पूर्णिया: जिन्दगी रोशन करने वाली किताबें अंधेरे में

फोटो : सौरभ शेखर

डिजिटल हो रहे इस देश में एक ओर जहां कोरोना काल ने पढ़ाई लिखाई के नए मानकों से परिचित कराया. क्लास की दीवारों के बाहर घर-घर तक शिक्षक की पहुंच का दायरा बढ़ा दिया वहीं पूर्णिया शहर स्थित राज्य पुस्तकालय बदहाली के दौर से गुजर रहा है. यूं तो किताबें जिन्दगी रोशन करती हैं पर पूर्णिया लाइब्रेरी में बीते कई सालों से बिजली का एक बल्ब तक नहीं जला.

प्रतिनियोजित कर्मियों के भरोसे पुस्तकालय

पुस्तकालय के स्थायी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के कई साल बीत गए गए पर अब तक पुस्तकालय को एक भी स्थायी कर्मचारी नहीं मिल पाया है. पुस्तकालय के काम के लिए जिला शिक्षा विभाग द्वारा चार लोग प्रतिनियोजन पर रखे गए हैं. पुस्तकालय में काम करने वाले एक कर्मी ने बताया कि लाइब्रेरी की सुरक्षा की दृष्टि से नाइट गार्ड तक उपलब्घ नहीं है.

अखबार तक से वंचित हैं पाठक

यह विडंबना ही है कि रेणु के अंचल की लाइब्रेरी में सवा दो लाख बिल बकाया होने के कारण कई सालों से बिजली की आपूर्ति नहीं हुई. बिजली ना होने के कारण शाम ढलते ही पुस्तकालय में सन्नाटा पसर जाता है.

पुस्तकालय में काम करने वाले एक कर्मी ने बताया कि फंड का आवंटन ना होने के कारण हम अखबार और पत्रिका तक अपने स्थायी पाठकों को उपलब्ध नहीं करा पाते. उन्होंने बताया कि अगर अखबार आता भी है तो उसका भुगतान हम निजी तौर पर करते हैं. सरकार की तरफ से पत्र पत्रिकाओं के खरीद के लिए कोई पैसा नहीं आता.

आश्वासन का दीमक

लाइब्रेरी में बुक सेल्फ ना होने के कारण कई सारी किताबें जमीन पर रखी रखी बर्बाद हो रही है. लाइब्रेरी में तमाम बड़े साहित्यकारों की कई महत्वपूर्ण किताबें हैं पर रखरखाव की व्यवस्था इतनी खराब है कि कई किताबों को दीमक लग गया है.

इस राज्य पुस्तकालय की स्थापना वर्ष 1952 में हुई थी. इसका संचालन सिन्हा पुस्तकालय, पटना द्वारा किया जाता है. कर्मचारी बताते हैं कि सिन्हा लाइब्रेरी को ही कमेटी गठित कर फंड को आवंटित करने का जिम्मा मिला था पर ना तो कभी कमेटी के सभी सदस्य बैठक कर पाए और ना ही फंड आवंटित हुआ. साल 2018 में बिहार सरकार के एक आदेश के बाद पुस्तकालय को मिला पैसा वापस ले लिया गया. कर्मियों ने बताया कि हमें सिन्हा लाइब्रेरी की तरफ से ये आश्वासन दिया गया है कि दिसम्बर 2020 के आखिरी तक फंड आवंटित कर दिया जाएगा.

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